कुछ किस्से और कहानी थे उनमे राजा और रानी थे
वो प्यारा मौसम बीत गया जिसके आंगन में पानी थे
अंदाज़ जुदा अंदाजों का बचपन धूलों में लिपटा था
घर से भी बड़े घरौंदे थे छुटपन की अमिट निशानी थे
सेंठे की कलम सलोनी सी तख्ती पर सरपट चलती थी
दावातें टूटा करती थीं करतब अपने तूफानी थे
कुछ उल्टा सीधा करते थे बुनते थे कई विचार नए
कुछ जोड़ा तोडा करते थे वो नुस्खे क्या नादानी थे
बाबा के कन्धों पर चढ़कर अहसास निराला होता था
दादी के पीछे छुपते थे जब भी करते मनमानी थे
चिड़िया के पंखों को रंगते तितली ko पकड़ा करते थे
चंदा संग खाते दूध भात वो जज्बे क्या अरमानी थे
मांगे अपनी मनवा लेते जब अपने पर आ जाते थे
पापा से थोडा डरते थे मम्मी के संग शैतानी थे
वो किस्से हुए कहीं gum से लगता है हम हो गए बड़े
उस किस्से और कहानी के कुछ हिस्से यही जुबानी थे ।
- डॉ0 ललित नारायण मिश्र
Monday, May 16, 2011
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