पोंछ कर आँखों से आंसू मुस्कराहट दे गया
गमजदा सूनी गली को एक आहट दे गया
वो फ़रिश्ते की तरह पूजा गया संसार में
जो अंधेरी बस्तियों को जगमगाहट दे गया ।- मनीष 'मन' इटावा 07599283569
Saturday, May 28, 2011
Wednesday, May 25, 2011
नेता जी की ठेकेदारी
एक अवधी रचना रफीक सादानी फैजाबाद की -
"बरखा मा विद्यालय ढहि गा वही के नीचे टीचर रहि गा
नहर के खुलते दुई पुल बहि गा तोहरेन पूत कै ठेकेदारी जियो बहादुर खद्दर धारी ।"
(during rain school collapsed, teacher died below that and while start of canal two bridges washed away due to flow of canal ,Dear politician live long these all were made under contractorship of your son)
"बरखा मा विद्यालय ढहि गा वही के नीचे टीचर रहि गा
नहर के खुलते दुई पुल बहि गा तोहरेन पूत कै ठेकेदारी जियो बहादुर खद्दर धारी ।"
(during rain school collapsed, teacher died below that and while start of canal two bridges washed away due to flow of canal ,Dear politician live long these all were made under contractorship of your son)
Monday, May 23, 2011
ईश्वर
बच्चा बोला देख कर मस्जिद आलीशान
अल्ला तेरे एक को इतना बड़ा मकान
अंदर मूरत पर चढ़े घी पूड़ी पकवान
मंदिर के बाहर खड़ा ईश्वर मांगे दान -निदा फाजली
अल्ला तेरे एक को इतना बड़ा मकान
अंदर मूरत पर चढ़े घी पूड़ी पकवान
मंदिर के बाहर खड़ा ईश्वर मांगे दान -निदा फाजली
Monday, May 16, 2011
कुछ किस्से और कहानी थे उनमे राजा और रानी थे
वो प्यारा मौसम बीत गया जिसके आंगन में पानी थे
अंदाज़ जुदा अंदाजों का बचपन धूलों में लिपटा था
घर से भी बड़े घरौंदे थे छुटपन की अमिट निशानी थे
सेंठे की कलम सलोनी सी तख्ती पर सरपट चलती थी
दावातें टूटा करती थीं करतब अपने तूफानी थे
कुछ उल्टा सीधा करते थे बुनते थे कई विचार नए
कुछ जोड़ा तोडा करते थे वो नुस्खे क्या नादानी थे
बाबा के कन्धों पर चढ़कर अहसास निराला होता था
दादी के पीछे छुपते थे जब भी करते मनमानी थे
चिड़िया के पंखों को रंगते तितली ko पकड़ा करते थे
चंदा संग खाते दूध भात वो जज्बे क्या अरमानी थे
मांगे अपनी मनवा लेते जब अपने पर आ जाते थे
पापा से थोडा डरते थे मम्मी के संग शैतानी थे
वो किस्से हुए कहीं gum से लगता है हम हो गए बड़े
उस किस्से और कहानी के कुछ हिस्से यही जुबानी थे ।
- डॉ0 ललित नारायण मिश्र
वो प्यारा मौसम बीत गया जिसके आंगन में पानी थे
अंदाज़ जुदा अंदाजों का बचपन धूलों में लिपटा था
घर से भी बड़े घरौंदे थे छुटपन की अमिट निशानी थे
सेंठे की कलम सलोनी सी तख्ती पर सरपट चलती थी
दावातें टूटा करती थीं करतब अपने तूफानी थे
कुछ उल्टा सीधा करते थे बुनते थे कई विचार नए
कुछ जोड़ा तोडा करते थे वो नुस्खे क्या नादानी थे
बाबा के कन्धों पर चढ़कर अहसास निराला होता था
दादी के पीछे छुपते थे जब भी करते मनमानी थे
चिड़िया के पंखों को रंगते तितली ko पकड़ा करते थे
चंदा संग खाते दूध भात वो जज्बे क्या अरमानी थे
मांगे अपनी मनवा लेते जब अपने पर आ जाते थे
पापा से थोडा डरते थे मम्मी के संग शैतानी थे
वो किस्से हुए कहीं gum से लगता है हम हो गए बड़े
उस किस्से और कहानी के कुछ हिस्से यही जुबानी थे ।
- डॉ0 ललित नारायण मिश्र
Saturday, May 14, 2011
सियासी लोग
सियासी लोग
नदी के घाट पर यदि कुछ सियासी लोग बस जाएँतो प्यासे होंठ एक - एक बूँद पानी को तरस जाएँगनीमत है क़ि मौसम पर हुकूमत चल नहीं सकतीनहीं तो सारे बादल इनके खेतों में बरस जाएँ .--जमुना प्रसाद उपाध्याय (फैजाबाद )
नदी के घाट पर यदि कुछ सियासी लोग बस जाएँतो प्यासे होंठ एक - एक बूँद पानी को तरस जाएँगनीमत है क़ि मौसम पर हुकूमत चल नहीं सकतीनहीं तो सारे बादल इनके खेतों में बरस जाएँ .--जमुना प्रसाद उपाध्याय (फैजाबाद )
Thursday, May 12, 2011
Tuesday, May 10, 2011
Monday, May 9, 2011
भ्रष्ट..ठेकेदार
खड़े रहते हैं चौखट पर हिफाज़त के लिए हरदम
कहानी महल के भीतर की पहरेदार क्या जानें
इमारत बन गयी पूरी महज चौथाई पैसे में
गिरेगी किसके बच्चों पे ये ठेकेदार क्या जाने?-कुमार मनोज
कहानी महल के भीतर की पहरेदार क्या जानें
इमारत बन गयी पूरी महज चौथाई पैसे में
गिरेगी किसके बच्चों पे ये ठेकेदार क्या जाने?-कुमार मनोज
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