जब जीता खुद से ही जीता जब हारा खुद से हार गया
जंगों को जीता कभी- कभी मैं जीती बाजी हार गया
संकल्पों से ही नाता है हमने न चुने विकल्प कभी
जिसने जैसा चाहा उसने बस वैसा अर्थ निकाल गया.
औरों में दम था कहाँ डुबा देते जो मेरी कश्ती को
डूबे हम वहीं जहाँ अपनी मेहनत का पानी सूख गया
गिनती थी कभी शरीफों में चर्चा में हम ही रहते थे
अब खुद में ही आवारा हैं जब से घर-आँगन छूट गया.
इतिहास अनोखा है अपना कागज में कैद नहीं होता
अम्बर के पन्नों में कोई मेरी तस्वीर उतार गया.-ललित
Saturday, October 30, 2010
Friday, October 8, 2010
vatan kee aawaj
खामोश वतन कुछ कहता है कुछ प्रश्न सभी से करता है
जिस दीपक से दुनिया रौशन वो शमां ढूंढता रहता है
किसने सूरज का रथ रोका क्यों घोर अँधेरा कायम है ?
घर में ही कुछ गद्दार छिपे उस ओर इशारा करता है
कुछ काट रहे उस बरगद को जिस से वो छाया पाते थे
सौगात भरे इतिवृत्तों का सन्दर्भ सुनाता रहता है
सब के सब मगन महोत्सव में बुनियादों का दुःख कौन सुने
सूनी आँखों के सपने में उम्मीद जगाता रहता है
सिसकन क्यों उठी कंगूरे से मीनारों का दम सिहर गया
कुछ सडन भरे अखबारों का सन्देश सुनाता रहता है
अर्जुन संग कृष्ण नहीं रथ पर गीता का सबक सुनें किस से
कौरव संग खड़े पितामह हैं ये व्यथा बताता रहता है -ललित
जिस दीपक से दुनिया रौशन वो शमां ढूंढता रहता है
किसने सूरज का रथ रोका क्यों घोर अँधेरा कायम है ?
घर में ही कुछ गद्दार छिपे उस ओर इशारा करता है
कुछ काट रहे उस बरगद को जिस से वो छाया पाते थे
सौगात भरे इतिवृत्तों का सन्दर्भ सुनाता रहता है
सब के सब मगन महोत्सव में बुनियादों का दुःख कौन सुने
सूनी आँखों के सपने में उम्मीद जगाता रहता है
सिसकन क्यों उठी कंगूरे से मीनारों का दम सिहर गया
कुछ सडन भरे अखबारों का सन्देश सुनाता रहता है
अर्जुन संग कृष्ण नहीं रथ पर गीता का सबक सुनें किस से
कौरव संग खड़े पितामह हैं ये व्यथा बताता रहता है -ललित
Wednesday, September 22, 2010
maa
लोरी गा मैं सो जाऊं .उन यादों में खो जाऊं
जिसमे सपने सच्चे थे माँ हम कितने अच्छे थे
माथे पर काला टीका बिन उसके बचपन फीका
नज़र कहीं न लग जाये तेरा यही सलीका था
माथा फिर सहला दे माँ चैन भरा जीवन पाऊँ. लोरी गा मैं सो जाऊं.
गलती जितनी बार करूँ उतना ही हर बार डरूं
गुस्सा तेरा सह जाऊं तुझसे लिपट-लिपट जाऊं
गुस्सा फिर दिखला दे माँ मैं न कहीं भटक जाऊं.लोरी गा मैं सो जाऊं .
माँ मैं तबसे भूखा हूँ जबसे तुझसे रूठा हूँ
सब कुछ मेरे पास मगर कुछ खाली कुछ टूटा हूँ
फिर एक बार खिला दे माँ भूखा कहीं न रह जाऊं. लोरी गा मैं सो जाऊं .
मुझको नींद नहीं आती माँ मुझको डर लगता है
सालों साल नहीं सोया सूरज रोज निकलता है
थपकी मुझे लगा दे माँ मैं सुकून से सो जाऊं. लोरी गा मैं सो जाऊं.-ललित
जिसमे सपने सच्चे थे माँ हम कितने अच्छे थे
माथे पर काला टीका बिन उसके बचपन फीका
नज़र कहीं न लग जाये तेरा यही सलीका था
माथा फिर सहला दे माँ चैन भरा जीवन पाऊँ. लोरी गा मैं सो जाऊं.
गलती जितनी बार करूँ उतना ही हर बार डरूं
गुस्सा तेरा सह जाऊं तुझसे लिपट-लिपट जाऊं
गुस्सा फिर दिखला दे माँ मैं न कहीं भटक जाऊं.लोरी गा मैं सो जाऊं .
माँ मैं तबसे भूखा हूँ जबसे तुझसे रूठा हूँ
सब कुछ मेरे पास मगर कुछ खाली कुछ टूटा हूँ
फिर एक बार खिला दे माँ भूखा कहीं न रह जाऊं. लोरी गा मैं सो जाऊं .
मुझको नींद नहीं आती माँ मुझको डर लगता है
सालों साल नहीं सोया सूरज रोज निकलता है
थपकी मुझे लगा दे माँ मैं सुकून से सो जाऊं. लोरी गा मैं सो जाऊं.-ललित
Friday, September 10, 2010
hifazat
कभी पढ़ते हैं हम गीता कभी कुर-आन पढ़ते हैं
इबादत में कभी रोज़ा कभी नौरात रखते हैं
यही अरदास है रब से हमें रखे हिफाज़त से
रहे कायम अमन दुनिया में ये फ़रियाद करते हैं - ललित
इबादत में कभी रोज़ा कभी नौरात रखते हैं
यही अरदास है रब से हमें रखे हिफाज़त से
रहे कायम अमन दुनिया में ये फ़रियाद करते हैं - ललित
Saturday, August 21, 2010
bagawat
यही इलज़ाम है सर पर क़ि मै तकरार करता हूँ
तुम्हारे हक़ हुकूकों के लिए हर बार करता हूँ
सिलसिला इस तरह जारी रहे अपनी बगावत का
मै बागी हूँ बगावत धर्म को स्वीकार करता हूँ - ललित
तुम्हारे हक़ हुकूकों के लिए हर बार करता हूँ
सिलसिला इस तरह जारी रहे अपनी बगावत का
मै बागी हूँ बगावत धर्म को स्वीकार करता हूँ - ललित
ardaas
गीता कुरान बांचें कैसे मजहब ही लड़ते जाते हैं
मंदिर मस्जिद की बात नहीं मुल्ला पंडित भिड़ जाते हैं
दस्तूर अजब इस महफ़िल का फनकार यहाँ लुट जाते हैं
ईंटों क़ि सिर्फ हवेली है भुतहे बंगले कहलाते हैं
हम दर्द सहेजे हैं जिनका हमदर्द वही बन जाते हैं
पोथी की चन्द लकीरों में भगवन सिमटते जाते हैं
खुदगर्ज यहाँ कुछ ऐसे हैं नीलाम वतन कर जाते हैं
हाथों पर हाथ धरे बैठे जिन्दा मुर्दे मिल जाते हैं
दिलकश आवाज परिंदों की गुलजार चमन कर जाते हैं
मंदिर मस्जिद दोनों रब के अरदास यही फरमाते हैं
-ललित
मंदिर मस्जिद की बात नहीं मुल्ला पंडित भिड़ जाते हैं
दस्तूर अजब इस महफ़िल का फनकार यहाँ लुट जाते हैं
ईंटों क़ि सिर्फ हवेली है भुतहे बंगले कहलाते हैं
हम दर्द सहेजे हैं जिनका हमदर्द वही बन जाते हैं
पोथी की चन्द लकीरों में भगवन सिमटते जाते हैं
खुदगर्ज यहाँ कुछ ऐसे हैं नीलाम वतन कर जाते हैं
हाथों पर हाथ धरे बैठे जिन्दा मुर्दे मिल जाते हैं
दिलकश आवाज परिंदों की गुलजार चमन कर जाते हैं
मंदिर मस्जिद दोनों रब के अरदास यही फरमाते हैं
-ललित
Monday, August 16, 2010
ghar aur jeevan
अरमानों की धुप उतरती आँगन में
दालानों का दर्द कबीरा गाता है
पोथी फटी -फटी सी ढाई आखर की
कागा बैठ मुंडेरी पर इतराता है
इस देहरी की ये ही राम कहानी है
चौखट चौबारे से गहरा नाता है
बंधन का अनुपम सौंदर्य कंगूरे में
ओसारे का तन मन भीगा जाता है
चूती छत और टूटी छप्पर छानी में
दर्शन जीवन का गहराता जाता है
आना जाना यहाँ एक परिपाटी है
इस जग से जन्मों -जन्मों का नाता है
उजियारे की चूनर थामे हाथों में
बस्ती का इतिहास फकीरा गाता है-ललित
दालानों का दर्द कबीरा गाता है
पोथी फटी -फटी सी ढाई आखर की
कागा बैठ मुंडेरी पर इतराता है
इस देहरी की ये ही राम कहानी है
चौखट चौबारे से गहरा नाता है
बंधन का अनुपम सौंदर्य कंगूरे में
ओसारे का तन मन भीगा जाता है
चूती छत और टूटी छप्पर छानी में
दर्शन जीवन का गहराता जाता है
आना जाना यहाँ एक परिपाटी है
इस जग से जन्मों -जन्मों का नाता है
उजियारे की चूनर थामे हाथों में
बस्ती का इतिहास फकीरा गाता है-ललित
Monday, August 9, 2010
Tuesday, April 6, 2010
proud to be Indian
Our PM Dr.Manmohan Singh is most qualified PM in the world.Proud to be Indian.
-Lalit
-Lalit
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