खामोश वतन कुछ कहता है कुछ प्रश्न सभी से करता है
जिस दीपक से दुनिया रौशन वो शमां ढूंढता रहता है
किसने सूरज का रथ रोका क्यों घोर अँधेरा कायम है ?
घर में ही कुछ गद्दार छिपे उस ओर इशारा करता है
कुछ काट रहे उस बरगद को जिस से वो छाया पाते थे
सौगात भरे इतिवृत्तों का सन्दर्भ सुनाता रहता है
सब के सब मगन महोत्सव में बुनियादों का दुःख कौन सुने
सूनी आँखों के सपने में उम्मीद जगाता रहता है
सिसकन क्यों उठी कंगूरे से मीनारों का दम सिहर गया
कुछ सडन भरे अखबारों का सन्देश सुनाता रहता है
अर्जुन संग कृष्ण नहीं रथ पर गीता का सबक सुनें किस से
कौरव संग खड़े पितामह हैं ये व्यथा बताता रहता है -ललित
Friday, October 8, 2010
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment