मै खुश हूँ क़ि कचरे से दूर हूँ
क्योंकि मैं गाँव में हूँ अपनों की छाँव में हूँ ।
मै खुश हूँ क़ि मुझे सुबह-शाम कुत्ते नहीं टहलाने पड़ते
लूट हत्या वाली ख़बरें मेरे घर नहीं आतीं क्योंकि मेरे घर चैनल और अखबार नहीं आते ।
मै खुश हूँ क़ि मुझे शेयर बाज़ार का कीड़ा नहीं काटता
ट्रान्सफर पोस्टिंग का लफड़ा अपने जेहन में नहीं आता
घोटाले और घूस की अंकगणित मुझे नहीं आती
मैं विद्वान् भी नहीं जिस पर मैं घमंड करूँ सर पर लाद कर घूमता फिरूँ ...
फिर भी मै खुश हूँ क़ि उतना मैं भी खाता हूँ जितना वो नेता और प्रोफेसर
वो खाकर बीमार पड़ जाता है और मैं खाकर जी जाता हूँ
वो डर-डर खुदा खरीदने की कोशिश करता है
मैं दर-दर खुदा पा जाता हूँ
वो अपनी दुनिया में ही हार जाता है मैं खुद को हार कर सब जीत जाता हूँ
और इस तरह मैं खुश से खुश-नशीब होता जाता हूँ .-ललित
Friday, December 16, 2011
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