घिरने लगीं घटायें छाने लगा कुहासा, कुचली हुई शिखा से आने लगा धुंवा सा
कोई मुझे बता दे क्या आज हो रहा है, मुख को छिपा तिमिर में क्यों तेज रो रहा है
निस्तेज है हिमालय गंगा डरी हुई है, निस्तब्धता निशा की दिल में भरी हुई है
उन्माद बेकली का उत्थान मांगता हूँ,विस्फोट मांगता हूँ तूफ़ान मांगता हूँ -रामधारी सिंह "दिनकर जी"
Thursday, January 26, 2012
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