सतुआ संक्रांति
जिस तरह मकर संक्रांति पूरे भारत में धूम धाम से मनाई जाती है उसी तरह जब सूर्य देव मेष राशि में प्रवेश करते हैं तो सतुआ संक्रांति मनाई जाती है। माना जाता है कि इस दिन से शुभ कार्य प्रारम्भ हो सकते हैं। भारतीय जन जीवन में फसलें त्यौहार और त्यौहार फसलों के पकने से जुड़े हुए हैं। फसलें मौसम आधारित हैं और मौसम सूर्य और उससे उत्पन्न ताप से प्रभावित होता है इस तरह सूर्य देव प्रकृति और जीवन की शैली को नियंत्रित करते रहते हैं.
सतुआ संक्रांति उत्तर भारत का प्रसिद्ध त्यौहार रहा है फ़िलहाल आधुनिक जीवन शैली में यह गांव और लोक मान्यताओं में अब भी धूम धाम से मनाया जाता है। सतुआ या सत्तू खासकर जौ और चने को भूनकर और पीसने के बाद मिलाकर बनाया जाता है। कुछ जगह दोनों को अलग -अलग ही रखते हैं। सत्तू के व्यंजन सदियों से लोकप्रिय रहे हैं जिनमें से बाटी या लिट्टी सर्व सुलभ है। कहते हैं कि लम्बी दूरी की यात्रा के लिए एक ऐसे भोजन की तलाश थी जो धूप ,गर्मी ,बरसात की नमी से ख़राब न हो और कई दिनों तक चले। सत्तू इस प्रयोग की तलाश का आविष्कार कहा जा सकता है जिसको जैसे चाहो वैसे प्रयोग में लाओ। प्यास लगे ,लू लग जाय तो घोल के पी लो इससे बढ़िया कोल्ड ड्रिंक नहीं , भूख लगे तो पानी में मिक्स कर खा लो नूडल्स से भी कम समय में तैयार है और अगर समय हो तो लिट्टी बनाकर या पूड़ी में भरकर खाया जा सकता है गारंटी के साथ घंटों आपको भूख नहीं लगने देगा।
इस देशी खाद्य पर हुए रिसर्च ने इसको बेहतरीन फ़ास्ट फ़ूड माना है कुछ न्यूट्रिशनिस्ट इसे सुपर फ़ूड कहने से नहीं चूकते। इंस्टैंट एनर्जी के साथ साथ प्रोटीन , कैल्शियम, मैग्नीशियम , आयरन और फाइबर का एक बेहतरीन स्रोत इसे माना गया है। पेय पदार्थ के रूप में इसकी तासीर ठंडी होती है इसलिए लू से बचाता है। वजन घटाने ,कोलेस्ट्रॉल घटाने में इसका प्रयोग बढ़ चला है , डाइबिटीज में भी कारगर है। ऐसे ही गुणों के चलते आजकल ये अमेज़न जैसे प्लेटफॉर्म पर विदेशों तक जा पहुँचा है।वैसे कोई स्टार्ट अप मास्टर देर सबेर गन्ने के जूस और लस्सी की तरह इसे भी कोल्ड ड्रिंक वाली मार्किट तक पहुँचा देगा। फ़िलहाल सतुआ संक्रांति और उसके बाद प्याज-गुड़ और सिरके के साथ सत्तू लपेट कर खाने का मजा लेते रहिये ।